शाइरी By Nazm << सियासत नया दौर >> दिल की कश्मकश लफ़्ज़ों में निकाल देता हूँ जिस्म क्या मैं रूह के कपड़े उतार लेता हूँ मैं नहीं जानता क़सीदा क़ितआ शे'र-ओ-मिस्रा क्या है दिल में जो आता है वरक़ पर उतार देता हूँ Share on: