शोला-साज़ By Nazm << जो मुमकिन हो अगर ऐसा दर्द की माला >> कैफ़-ए-विसाल की वही दुनिया नसीब हो हमदम कभी कभी ये दुआ माँगता हूँ मैं मिट जाए जिस्म-ओ-रूह की जिस से ये ग़ैरियत बेगाना-ए-वफ़ा ये वफ़ा माँगता हूँ मैं इस शोला-साज़ गीत की शिद्दत को पा के भी क्यों मुझ से पूछते हो कि क्या माँगता हूँ मैं Share on: