तीरा-ओ-तार फ़ज़ाओं में सितम-ख़ुर्दा बशर और कुछ देर उजाले के लिए तरसेगा और कुछ देर उठेगा दिल-ए-गीती से धुआँ और कुछ देर फ़ज़ाओं से लहू बरसेगा और फिर अहमरीं होंटों के तबस्सुम की तरह रात के चाक से फूटेगी शुआ'ओं की लकीर और जम्हूर के बेदार तआ'वुन के तुफ़ैल ख़त्म हो जाएगी इंसाँ के लहू की तक़्तीर और कुछ देर भटक ले मिरे दरमाँदा नदीम और कुछ दिन अभी ज़हराब के साग़र पी ले नूर-अफ़शाँ चली आती है उरूस-ए-फ़र्दा हाल तारीक-ओ-सम-अफ़्शाँ सही लेकिन जी ले