वो इक मा'सूम सी नन्ही सी गुड़िया जिसे हैवानियत ने नोच डाला दरिंदो शर्म तुम को क्यूँ न आई तुम्हारे घर भी होगी माँ की जाई उसे शर्मिंदगी महसूस होगी दरिंदा जिस का तुम जैसा है भाई तुम्हारे जन्म पर धिक्कार नीचो पड़े तुम पर ख़ुदा की मार नीचो जो तुम ने वहशी-पन का खेल खेला किसी मा'सूम ने ये कैसे झेला गधों की तरह उस को नोच डाला हवस ने कर लिया मुँह अपना काला बना कर मौत का उस को निवाला कोई मज़लूम को न यूँ सताए किसी पर भी न ऐसा वक़्त आए हुआ है ज़ुल्म वो मा'सूमियत पर सुने तो आत्मा भी काँप जाए हमारी बच्चियों को तो ख़ुदा ही हवस के इन दरिंदों से बचाए