मैं वो नहीं हूँ मैं हूँ जो शायद मैं अपने होने से कुछ अलग हूँ हयात की कुछ अलामतों में निगार-ए-जाँ की क़बाहतों में फ़रेब जैसी सदाक़तों में तमाम अंधी बसारतों में मैं ख़ुद को आवाज़ दे रहा हूँ न जाने कब से यहीं खड़ा हूँ मगर मैं हूँ कब ये मेरे होने का एक धोका मुझे भी हैरान कर रहा है कि मैं कहीं हूँ मैं वो नहीं हूँ मैं…. वो नहीं हूँ