सुब्ह हुआ जब नूर का तड़का सो कर उट्ठा अच्छा लड़का ग़ुस्ल किया फिर नाश्ता खाया बस्ता अपनी बग़ल दबाया फिर मकतब का रस्ता पकड़ा राह में उस को मिला इक मुर्ग़ा मुर्ग़ा बोला आओ खेलें शोर मचाएँ और डंड पेलें लड़का बोला ओ भाई मुर्ग़े खेलने का ये वक़्त नहीं है मैं अब पढ़ने जाता हूँ मुर्ग़ा बोला कुकड़ूँ कूँ ख़ैर से फिर आगे को बढ़ा वो जल्दी जल्दी चलने लगा वो पेड़ पे चिड़ियाँ बोल रही थीं उड़ने को पर तोल रही थीं लड़का उन के पास से गुज़रा गुज़रा तो बोली इक चिड़िया आहा भय्या आओ खेलें आज ज़रा सकूल न जाओ लड़का बोला प्यारी चिड़िया खेल से है पढ़ना अच्छा मैं अब पढ़ने जाता हूँ चिड़िया बोली चूँ चूँ चूँ