सुब्ह होते ही आठ करोड़ मस्ख़रे निकल आते हैं सड़कों पर और शुरूअ कर देते हैं नाच आठ करोड़ मस्ख़रे निकल आते हैं अपने रंगे चेहरों और लम्बी टोपियों के साथ तोड़-फोड़ डालते हैं आसमान धज्जी धज्जी कर देते हैं धूप उलझा लेते हैं हवा की डोर अपने हाथों में रास्ता नहीं देते मय्यत-गाड़ियों को और आग बुझाने वाले इंजन को भर देते हैं सय्यारे को बेहूदा फ़िक़्रों से और शाम आती है लौट जाते हैं सूरज के साथ कोरस गाते हुए और रात होती है और सुब्ह होती है सुब्ह होते ही आठ करोड़ मस्ख़रे निकल आते हैं सड़कों पर और शुरूअ कर देते हैं नाच...