सुब्ह हुई अब उट्ठो बच्ची नींद अभी तक क्यों है कच्ची रात गई वो सूरज निकला वो फैला घर भर में उजाला उट्ठो उट्ठो मुँह धो डालो सुस्ती हो तो जा के नहा लो आपा जागीं भय्या जागे उठते ही बिस्तर से भागे अब्बा उट्ठे दादी उट्ठीं और नमाज़ें सब ने पढ़ लीं जाग उठा है घर भर सारा ये कैसा सोना है तुम्हारा सुब्ह सवेरे सुस्ती कैसी आदत कुछ अच्छी नहीं ऐसी सुब्ह का मंज़र है क्या अच्छा कितना सुहाना कैसा प्यारा उठ बैठो अंगड़ाई ले कर और लपेटो अपना बिस्तर अपने काम करो तुम ख़ुद ही बात यही है सब से अच्छी नाश्ता कर लो जल्दी आ कर फिर पढ़ आओ झट झट जा कर आज नया लेना है सबक़ फिर जल्दी उल्टे ताकि वरक़ फिर उस्तानी के घर है जाना कल का सबक़ उन को है सुनाना पढ़ने लिखने ही में मज़ा है काम इसी से सब का बना है है यही हर लड़की का गहना हरगिज़ तुम बे-कार न रहना सीखना है फिर खाना पकाना रंग अपना घर भर में जमाना देखो अपनी ज़िद पे न उड़ना सब को तुम से काम है पड़ना देखो वक़्त न अपना खोना पढ़ना लिखना सपना पिरोना काम से हरगिज़ जी न चुराओ ताकि जहाँ में इज़्ज़त पाओ अदब तमीज़ और हुनर सलीक़ा सीखो घर में बेटी रफ़ीक़ा सीख लो जल्दी खाना पकाना अपनी माँ का हाथ बटाना ये सब तुम जब सीख चुकोगी घर और बाहर इज़्ज़त होगी सब ये कहेंगे वाह री लड़की तू है कितनी अच्छी बेटी तुझ से क्या ख़ुश जी है हमारा कितनी सुघड़ क्या काम है प्यारा जितना प्यारा काम है तेरा दुनिया भर में नाम है तेरा