सुब्ह-ए-काज़िब में एक नज़्म By Nazm << अच्छी बातें पीर-ए-मुग़ान-ए-उर्दू >> ये सोच के दुख होगा क्यूँ रात गए हम ने दरवाज़ा खुला रक्खा किस शख़्स की चाहत में आँखों की मुंडेरों पर इक दीप जला रक्खा Share on: