रात फैलती गई है दूर दूर जंगलों में रास्ता टटोलती हवा की साएँ साएँ जैसे साँस रुक रही हो ओस सोगवार ज़ार ज़ार रो रही हो लाला-ज़ार में गुलों की पतियाँ बिखर के राख हो रही हूँ आख़िरी उम्मीद टिमटिमा के बुझ गई है वक़्त बह चुका है थम गया है साएँ साएँ रुक गई है