अज़ल से उस की सल्तनत को कोई मानता नहीं जो दिल में आ के झाँक ले तो जैसे जानता नहीं पर अब तो मान झूट की नफ़ी न कर नफ़ी न कर कि झूट है सच की सारी सल्तनत का वास्ता नफ़ी न कर कि झूट है नुत्क़ पर ख़िताब में आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद में मुआ'मले मुकालमे तकल्लुफ़ात-ओ-हादिसे मैं दोस्त यार मेहरबाँ खेत खेत रेंगता है झूट बहते आब में सींचता है नूर झूट शहर के मकान में भागता है तेज़ तेज़ झूट तेज़ कार में झूट काले हर्फ़ की बुलंद बाँग सुर्ख़ियाँ झूट अहद-ए-कुहना की दबीज़ लन-तरानियाँ झूट इस लिए कि सच का दूर तक पता नहीं ये तेरा सिर्फ़ वहम है मैं सच से बद-गुमाँ नहीं हर इक नक़ीब सच का लहके झूट के अलाव में गुमाँ को ख़िश्त कर के सच की नीव डालता रहा है झूट की नफ़ी न कर कि सच की दूधिया लकीर दूर झिलमिला सके