सूरज-1 By बाल कविता, Nazm << बे-ख़बर गर तुम मुझे पहचान लो >> पानी जगमग करता जाए सूरज इस में डूबा जाए बड़ी सी ये सोने की थाली क्या मालूम कहाँ खो जाए मग़रिब में जो बस्ते होंगे कितने वो ख़ुश-क़िस्मत होंगे हाथ बढ़ा कर बड़े मज़े से सूरज को छू लेते होंगे Share on: