स्वागत By Nazm << अब्बा की ऐनक सफ़र पर सफ़र >> कोई आवाज़ जब भी सनसनाती है कभी सुनसान रातों में तो ये एहसास होता है कि जैसे यक-ब-यक आ कर हवा का तेज़ झोंका मेरे दरवाज़े की कुंडी खटखटाता है मगर पट खोलता हूँ जब मिरी महरूमियाँ हाथों को फैलाए स्वागत मेरा करती हैं Share on: