कुछ लफ़्ज़ बहुत बे-मा'नी से कुछ लफ़्ज़ बहुत ही बे-मतलब जब ज़ेहन में बे-मा'नी आ कर रुक जाते हैं बे-मतलब ही तो ऐसा लगता है मुझ को ये दुनिया ये जीना मरना ये प्यार मोहब्बत ये रिश्ते ये रंज-ओ-ग़म ये दर्द-ओ-अलम ये ख़ुशियाँ ये गहमा-गहमी ये सब कुछ ही बे-मा'नी है ये सब कुछ ही बे-मतलब है