इंतिज़ार By Nazm << जाएज़ा बे-मा'नी >> एक नाकाम सी उम्मीद लिए रोज़ करता हूँ इंतिज़ार तिरा और इक लफ़्ज़ ना-उमीदी का थाम लेता है आ के हाथ मिरा और कहता है मुझ से चुपके से अब न आएगा कोई किस के लिए क्यों सजाए हुए है ये महफ़िल Share on: