शह-जहाँ का ताज है दुनिया के सब महलों का शाह प्यार का ये गीत है क़ल्ब-ए-हज़ीं की भी है आह इक शहंशह की मोहब्बत हो गई है ला-ज़वाल पैकर-ए-मरमर में पिन्हाँ है नुमायाँ है कमाल चौदहवीं की चाँदनी में ताज का वो हुस्न-ओ-रंग चाँद है अपने हरीफ़-ए-हुस्न के जल्वे से दंग ज़िंदगी में चाँद से बढ़ कर हसीं मुम्ताज़ थी शह-जहाँ की हम-नशीं थी हमदम-ओ-हमराज़ थी हुस्न उस का आज भी है गोशे गोशे से अयाँ ताज के हर एक पहलू में है उल्फ़त का निशाँ ताज हुस्न-ओ-इश्क़ का है ऐसा इक रंगीन ख़्वाब पेश करना ग़ैर मुमकिन है 'असद' जिस का जवाब