ताज-महल By मोहब्बत, इश्क़, लव, Nazm << तुम्हारे लफ़्ज़ चूहे की बारात चली >> धूप कितनी ख़ूबसूरत है यहाँ हसीं चेहरों पर धूप ताज-महल पर धूप हुस्न ख़ुद चल कर यहाँ हुस्न को देखने आता है मैं चलते-फिरते हुस्न में ऐसा खोया हूँ कि कुछ समझ में नहीं आता ताज को देखूँ या हुस्न-ए-गुरेज़ाँ को Share on: