अजल, इन से मिल, कि ये सादा-दिल न अहल-ए-सलात और न अहल-ए-शराब, न अहल-ए-अदब और न अहल-ए-हिसाब, ना अहल-ए-किताब न अहल-ए-किताब और न अहल-ए-मशीन न अहल-ए-ख़ला और न अहल-ए-ज़मीन फ़क़त बे-यक़ीन अजल, इन से मत कर हिजाब अजल, इन से मिल! बढ़ो, तुम भी आगे बढ़ो अजल से मिलो, बढ़ो, नौ-तवंगर गदाओ न कश्कोल-ए-दरयूज़ा-गर्दी छुपाओ तुम्हें ज़िंदगी से कोई रब्त बाक़ी नहीं अजल से हँसो और अजल को हँसाओ! बढ़ो बंदगान-ए-ज़माना बढ़ो बंदगान-ए-दिरम अजल ये सब इंसान मनफ़ी हैं मनफ़ी ज़ियादा हैं इंसान कम हो इन पर निगाह-ए-करम