सुब्ह-दम जब भी देखा है मैं ने कभी नन्हे बच्चों को स्कूल जाते हुए रक़्स करते हुए गुनगुनाते हुए अपने बस्तों को गर्दन में डाले हुए उँगलियाँ एक की एक पकड़े हुए सुब्ह-दम जब भी देखा है मैं ने उन्हें मामता उन की राहों में साया करे उन के क़दमों में ख़ुश्बू बिछाया करे देवता उन के हाथों को चूमा करें मन ही मन उन की बातों पे झूमा करें सुब्ह-दम जब भी देखा है मैं ने उन्हें मेरा जी चाहता है कि मैं दौड़ कर एक नन्हे कि उँगली पकड़ कर कहूँ मुझ को भी अपने स्कूल लेते चलो ता-कि ये तिश्ना-ए-आरज़ू-ए-ज़िंदगी फिर से आग़ाज़-ए-शौक़-ए-सफ़र कर सके