ख़याल-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत लिहाज़-ए-अह्द-ए-वफ़ा दिल-ओ-नज़र को जगाए कि जैसे सेहर किया ख़बर नहीं कि कहाँ ठहरे ज़िंदगी की अदा अभी तो एक ही वहदत है इश्क़ की बे-कल ये ताज है कि मोहब्बत की यादगार कोई कि एक टूटे हुए दिल का है क़रार कोई करे तो मेरी तरह तुझ से काश प्यार कोई जलाए जाते हैं यूँ भी तो ज़िंदगी के कँवल ज़मीं पे आया हुआ नूर का ये इक टुकड़ा ब-शक्ल-ए-ताज है गोया इक आरज़ू की फ़ज़ा ये नक़्श-ए-सब्ज़-ओ-सियह सुर्ख़ मरमरीं आ'ज़ा पहन के बैठे कोई जैसे दूधिया मलमल पुकारता है ये शहकार मुझ को दाद तो दो मिरे जमाल के कसरत की ताब है किस को मिरी नज़र की ये तक़्दीस-ए-अर्श-ओ-फ़र्श न हो मैं एक हुस्न-ए-नज़र हूँ मैं एक हुस्न-ए-अज़ल कोई हो दूर किसी से कि कोई पहलू-नशीं मगर ख़याल-ओ-गुमाँ की हुदूद भी तो नहीं फ़ना है आख़िरश हर कार-ए-आसमान-ओ-ज़मीं तो फिर हमेशा रहेगा ये कैसे ताज-महल