हार की जीत की रीत है ज़िंदगी ज़िंदगी मद्द-ओ-जज़्र-ए-हिकायात है गाह कोई ज़रर गाह कोई ज़ियाँ गाह बोहतान है गाह सौग़ात है ज़िंदगी मद्द-ओ-जज़्र-ए-हिकायात है ज़िंदगी तुझ से मैं प्यार करता रहा एक महबूबा-ए-दो-जहाँ की तरह मह-रुख़ाँ की तरह जान-ए-जाँ की तरह देख ऐ ज़िंदगी याँ बहुत हम-नज़र याँ बहुत हम-सफ़र तेरे मद्दाह हैं चाहे दार-ओ-रसन हो कि दिल-दारियाँ तेरे नक़्श-ए-क़दम मिट न पाएँ कभी