आरिज़-ए-वक़्त पे आँसू का लरज़ता क़तरा जिस ने पत्थर को मोहब्बत के सिखाए अंदाज़ चाँदनी जिस को उढ़ाती है सुनहरा आँचल हूरें हसरत-भरी नज़रों से जिसे तकती हैं संग-ए-मरमर में धुला शाह का प्यारा सपना सतह-ए-जमुना पे खिला हो कोई प्यारा सा कँवल किसी आशिक़ की हसीं याद का है अक्स-ए-जमील किसी काग़ज़ पे मुसव्विर के ख़यालों का जमाल किसी दीवाने के ख़्वाबों की ये ता'मीर-ए-हसीं किसी आज़र का तराशा हुआ ख़ामोश सनम या किसी शायर-ए-मदहोश की रंगीन ग़ज़ल महव-ए-आराम है जिस में कोई 'मुमताज़' महल अहल-ए-उल्फ़त की निशानी है यही ताज-महल