तलातुम

दिल आज बहुत घबराता है
दिल आज बहुत घबराता है

तूफ़ान-ओ-तलातुम के पाले गिर्दाब सँभाले हैं मुझ को
इक राहत-ए-जाँ हमदम की तरह कुछ ख़्वाब सँभाले हैं मुझ को

यूँ मेरे ग़मों के संजीदा आदाब सँभाले हैं मुझ को
और मेरी तबाही पर ख़ंदाँ अहबाब सँभाले हैं मुझ को

हर ज़ख़्म-ए-जिगर समझाता है
दिल आज बहुत घबराता है

घबरा के ग़ुरूर-ए-फ़ाक़ा-कशी पहलू में बिठा लेता है मुझे
शर्मा के सुरूर-ए-तिश्ना-लबी दामन में छुपा लेता है मुझे

समझा के फ़रेब-ए-नौहागरी बातों में लगा लेता है मुझे
बहला के सुकूत-ए-नीम-शबी ज़ानू पे सुला लेता है मुझे

हर शय से मगर उकताता है
दिल आज बहुत घबराता है

क्या आज मिरी ख़ामोशी भी इक शोर-ए-फ़ुग़ाँ बन जाएगी
झुँझला के निगाह-ए-यास मिरी ख़ुद शो'ला-फ़िशाँ बन जाएगी

पहलू से बगूले उट्ठेंगे हर साँस धुआँ बन जाएगी
जैसे कि मिरी नाकामी भी इक अज़्म-ए-जवाँ बन जाएगी

शो'ले की तरह लहराता है
दिल आज बहुत घबराता है

ख़िर्मन की हमिय्यत जागी है ऐ बर्क़-ओ-शरार अब क्या होगा
बरहम है निज़ाम-ए-हस्ती भी ऐ दर्द-ए-जिगर अब क्या होगा

हर वा'दा-ए-फ़र्दा रूठ गया ऐ शाम-ओ-सहर अब क्या होगा
चौंका है ज़मीर-ए-वहम-ओ-गुमाँ ऐ ज़ौक़-ए-नज़र अब क्या होगा

क्या जानिए क्या समझाता है
दिल आज बहुत घबराता है

क्या आज मैं अपने सोए हुए जज़्बात-ए-जुनूँ बेदार करूँ
सैलाब-ए-हवादिस बन जाऊँ बर्बादी-ए-सद-आज़ाद करूँ

निकलूँ मैं हुदूद-ए-इम्काँ से तूफ़ाँ से निगाहें चार करूँ
इक तल्ख़ तबस्सुम को ले कर दुनिया-ए-सितम पर वार करूँ


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