मेरे इन काकुल-ए-बरहम की हिकायत मत पूछ आह उस नाला-ए-पैहम की हक़ीक़त मत पूछ देख ले चश्म-ए-बसीरत से ज़माने का निज़ाम मुझ से ऐ दोस्त मिरे ग़म की सदाक़त मत पूछ लब-ए-रंगीं का वो ए'जाज़ कहाँ से लाऊँ साज़-ए-ख़ामोश में आवाज़ कहाँ से लाऊँ दास्तान-ए-दिल-ए-बर्बाद सुनाऊँ कैसे मुझ पे गुज़री है जो उफ़्ताद सुनाऊँ कैसे आतिश-ए-ग़म से सुलगता है कलेजा मेरा दिल-ए-नाशाद की फ़रियाद सुनाऊँ कैसे हाए अब ताक़त-ए-गुफ़्तार कहाँ से लाऊँ नग़्मा-ए-ग़म का ख़रीदार कहाँ से लाऊँ जाम-ओ-मीना में बहकते हुए ईमान को देख भूक-ओ-इफ़्लास से मरते हुए इंसान को देख हर तरफ़ शोर है फ़रियाद है बर्बादी है रू-ए-गर्दूं पे मचलते हुए तूफ़ाँ को देख अब बता चश्म-ए-फुसूँ-कार कहाँ से लाऊँ मस्त-ओ-बे-ख़ुद सी वो रफ़्तार कहाँ से लाऊँ पर तुझे इश्क़-ओ-मोहब्बत से कहाँ फ़ुर्सत है मय-ए-गुल-रंग की ला'नत से कहाँ फ़ुर्सत है आह मज़लूम निगाहों का फ़साना सुन ले हवस-ओ-हिर्स की दौलत से कहाँ फ़ुर्सत है दिल-ए-बेताब में फिर ताब कहाँ से लाऊँ अपनी आँखों में मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ अपने गुलशन की तबाही का गिला किस से करूँ शाम-ए-ग़ुर्बत की सियाही का गिला किस से करूँ होलियाँ ख़ून की खेली गईं इंसानों में अपनी ना-कर्दा-गुनाही का गिला किस से करूँ अपनी नींदों में तिरे ख़्वाब कहाँ से लाऊँ फ़ुर्सत-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब कहाँ से लाऊँ