बात जब ख़ामुशी में होती है बात इस मरहले पर आ पहुँची पर्दा-दारी के उठ गए पर्दे उन के रुख़ तक निगाह जा पहुँची फ़ासला भी है कुछ रिफ़ाक़त भी ये त'अल्लुक़ बड़ा निराला है गुफ़्तुगू दिल की दिल से है पैहम पर्दा-ए-राज़ उठने वाला है कुछ सवाल-ओ-जवाब हों कि न हों दिल की बात उन से अब कहें न कहें एक सहर-आफ़रीं तसव्वुर है आमने सामने रहें न रहें ये भी है इक मिलाप का पहलू ख़ामुशी बात ही की सूरत है राह-ओ-रस्म उन से आँखों आँखों में इक मुलाक़ात ही की सूरत है सद हम-आग़ोशी-ओ-हम-आहंगी ये मुलाक़ात गो ख़याली है इस त'अल्लुक़ पे क्यों निसार न हों ये तआ'रुफ़ बड़ा जमाली है