यूँ बसी रहती है मेरे दिल में तेरी आरज़ू जिस तरह मय में नशा है और है फूलों में बू जिस तरह है सब्ज़ा-ए-बेगाना में जोश-ए-नुमू जिस तरह मस्ती फ़ज़ाओं में निहाँ है चार-सू इस तरह रहती है मेरे दिल में तेरी आरज़ू जिस तरह बरबत में नग़्मा जिस तरह आतिश में नूर जिस तरह क़ौस-ओ-क़ुज़ह में रंग बादा में सुरूर जिस तरह तालिब की आँखों में मोहब्बत का ज़ुहूर इस तरह रहती है मेरे में तेरी आरज़ू जिस तरह पानी में ठंडक जिस तरह गुल में शराब जिस तरह ख़ंजर में जौहर जिस तरह मोती में आब जिस तरह अर्ज़-ओ-समा में फ़ितरत-ए-हुस्न-ओ-शबाब इस तरह रहती है मेरे दिल में तेरी आरज़ू जिस तरह कैफ़-ए-मोहब्बत में बहार-ए-ज़िंदगी जिस तरह दोशीज़ा-ए-फ़ित्रत के आरिज़ पर हँसी जिस तरह शोर-ए-ग़म-ए-दिल में तिलिस्म-ए-ख़ामुशी इस तरह रहती है मेरे दिल में तेरी आरज़ू