अब आँसुओं के धुँदलकों में रौशनी देखो हुजूम-ए-मर्ग से आवाज़-ए-ज़िंदगी को सुनो सुनो कि तिश्ना-दहन मालिक-ए-सबील हुए सुनो कि ख़ाक-बसर वारिस-ए-फ़सील हुए रिदा-ए-चाक ने दस्तार-ए-शह को तार किया तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया सुनो कि हिर्स-ओ-हवस क़हर-ओ-ज़हर का रेला ग़ुबार-ओ-ख़ार ओ ख़श-ओ-ख़ाक ही ने थाम लिया सियाहियाँ ही मुक़द्दर हों जिन निगाहों का ख़ुदा बचाए उन आँखों की शोला-बारी से डरो कि ज़र्द-रुख़ाँ नीम-जाँ ओ ख़स्ता-तनाँ हज़ार बार मरे और लाख बार जिए! वो लोग जिन को मयस्सर न आए मरहम-ए-वक़्त! वो लोग तल्ख़ी-ए-तक़दीर बाँट लेते हैं वो हाथ जिन पे हो नफ़रत का ज़ंग सदियों से वो हाथ लोहे की दीवार काट देते हैं