एक ही बिस्तर पर लेटे हुए कभी-कभार दो जिस्मों के दरमियान चंद शिकनों का फ़ासला सदियों पर फैल जाता है उस लम्हे के पैकार में बाहम पैवस्त दो जिस्मों से पैदा होने वाला तीसरा बदन सारी उम्र फ़िराक़ की घड़ियाँ गिनते गिनते आख़िर इसी ज़ंजीरे में एक नई कड़ी का इज़ाफ़ा बन जाता है और फिर वही अमल फिर वही ज़ंजीरा फिर वही कड़ी!