तवाइफ़

अजनबी डाल न यूँ मुझ पर हिक़ारत की नज़र
मैं तिरी चाहने वाली हूँ ज़रा देर ठहर

शौक़-ए-नज़्ज़ारा अगर है तो हर इक रह से गुज़र
आ तुझे अपनी निगाहों से पिला दूँ साग़र

चंद सिक्कों पे हुआ करता है हर शब को निसार
मेरे सीने का गुदाज़ और जवानी की बहार

जितना नापाक है तन उतना मिरा मन तो नहीं
क्यूँ ठिठकता है झिजकता है मैं नागन तो नहीं

माँग लेती हूँ ज़बाँ से कोई रहज़न तो नहीं
तेरे कुँबे ही से मैं हूँ तिरी दुश्मन तो नहीं

ये वो दर है जहाँ मोहताज-ओ-ग़नी आते हैं
नाम किस किस का मैं अब लूँ कि सभी आते हैं

वो जवाँ जिन की रगों में है बग़ावत रक़्साँ
जिन के चेहरों पे है नाकामी-ए-उल्फ़त का धुआँ

जिन के हर लफ़्ज़ में नश्तर है निगाहों में सिनाँ
कार-ख़ानों में घुटे जाते हैं जिन के अरमाँ

ज़िंदगी-भर जो मशीनों को लहू देते हैं
आ के कुछ देर मिरी बज़्म में हँस लेते हैं

कितने ऋषियों की कुटी में मिरे काशाने हैं
कितने दरवेशों के लब पर मिरे अफ़्साने हैं

मेरी हर साँस के आग़ोश में बुत-ख़ाने हैं
शैख़-साहब भी मिरे हुस्न के दीवाने हैं

जो मिरी बज़्म में है वो मिरा शैदाई है
कोई हिन्दू है न मुस्लिम है न ईसाई है

काल और क़हत की सेजों को सजाती नहीं मैं
ख़ून मज़दूर का गलियों में बहाती नहीं मैं

गोलियाँ अहल-ए-मोहब्बत पे चलाती नहीं मैं
पंच-साला कोई स्कीम बनाती नहीं मैं

अहल-ए-महफ़िल को रुलाना नहीं आता मुझ को
टेक्स पर टेक्स लगाना नहीं आता मुझ को

मैं हूँ इक झूट का बाज़ार ये माना मैं ने
मेरे ग़म्ज़े भी हैं तलवार ये माना मैं ने

मेरे फूलों में हैं सौ ख़ार ये माना मैं ने
मैं हूँ दौलत की तलबगार ये माना मैं ने

सब जतन हैं ये मगर इक दिल-ए-पुर-ग़म के लिए
जम्अ' करती नहीं दौलत को मैं एटम के लिए

मेरा मंशा नहीं अक़्वाम-ए-ज़ुबूँ की तस्ख़ीर
मेरा मक़्सद नहीं पहनाऊँ ख़िरद को ज़ंजीर

मेरा ईमाँ नहीं उल्फ़त हो रहीन-ए-ता'ज़ीर
मेरा अरमाँ नहीं मर जाए ग़रीबों का ज़मीर

मैं ने ग़ल्ले को गोदामों में छुपाया है कभी
मैं ने डॉलर के लिए हाथ बढ़ाया है कभी

मुझ को सरमाए के शो'ले ने जला डाला है
मेरी इस्मत के चराग़ों को बुझा डाला है

मेरे सीने से शराफ़त को मिटा डाला है
मुझ को इक पैकर-ए-तफ़रीह बना डाला है

मुझ में मरियम का तक़द्दुस था तो सीता का वक़ार
कर दिया ज़र ने मुझे रौनक़-ए-हुस्न-ए-बाज़ार

ख़ैर तू इन मिरी बातों पे कोई ध्यान न कर
मा-सिवा मेरे किसी का कभी अरमान न कर

अपना दिल और किसी राह में क़ुर्बान न कर
आ भी जा बाम पे अब देर मेरी जान न कर

मेरे सीने में जो शो'ला है न सो जाए कहीं
अजनबी डर है मुझे सुब्ह न हो जाए कहीं


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