तेरे बारे में सोचता हूँ मैं बाज़ औक़ात जब अकेले में और कोई न पास बैठा हो तेरे बारे में सोचता हूँ मैं और कई बार और लोगों की भीड़ के बावजूद जान-ए-वफ़ा मुझ को तेरा ख़याल आता है दर-हक़ीक़त गुदाज़ उल्फ़त में इंतिहा-ए-फ़िशार हसरत में शिद्दत-ए-सोज़-ओ-साज़ फ़ुर्क़त में जब मिरा जी उदास होता है वक़्फ़ हिरमान-ओ-यास होता है और किसी हमदम-ओ-यगाने से मुस्कुरा कर किसी बहाने से इज़्न-ए-इज़हार चाहता हूँ मैं कोई ग़म-ख़्वार चाहता हूँ मैं मुझ को तेरा ख़याल आता है तेरे बारे में सोचता हूँ मैं