ऐ सबा चाँदनी से कह देना याद उसे सुब्ह-ओ-शाम करते हैं अब कहाँ है हमारे दिल का सुकूँ ग़म में डूबे कलाम करते हैं दिल बहुत बे-क़रार रहता है ठहर जाए कभी कभी धड़कन याद आती है उस की शाम-ओ-सहर हम को भाता कहाँ है अब सावन अश्क आँखों के ऐ मिरे दिलबर दिल के हालात आम करते हैं लुट गए ज़िंदगी के सब सपने फिर भी हम आशियाँ बनाते हैं आज पत्थर के शहर में फिर से अपनी तक़दीर आज़माते हैं अपनी ख़ुशियों को अपने हाथों से बे-वफ़ा तेरे नाम करते हैं ऐ सबा चाँदनी से कह देना याद उसे सुब्ह-ओ-शाम करते हैं