सोचता हूँ कि तिरे प्यार के बदले मुझ को क्या मिला दर्द-ओ-ग़म-ओ-रंज-ओ-मुसीबत के सिवा इक तड़प एक कसक एक ख़लिश है पैहम एक लम्हा भी सुकूँ का न मिरे पास रहा और तू अजनबी आग़ोश की ज़ीनत बन कर इक चमकती हुई फ़िरदौस में जा बैठी है रक़्स करते हैं नए ख़्वाब निगाहों में तिरी दिल से माज़ी के सभी नक़्श मिटा बैठी है मेरी महबूब मिरे दिल के सियह-ख़ाने में झिलमिलाती हैं तिरी याद की शमएँ अब भी आहटें तेरी तसव्वुर में बसी हैं अब तक तेरे जल्वों से सजी हैं मिरी नज़रें अब भी मेरी तख़ईल के ख़्वाबीदा दरीचों से अभी तेरी पायल के छनकने की सदा आती है मेरे एहसास पे लहराती हैं ज़ुल्फ़ें तेरी जब कभी झूम के सावन की घटा आती है मैं ने हर चंद तुझे भूलना चाहा लेकिन फिर भी आँखों में तिरे ख़्वाब मचल जाते हैं अब तलक भी मिरी फ़िक्रों के तराशीदा ख़ुतूत जाने क्यूँ तेरे ख़द-ओ-ख़ाल में ढल जाते हैं अब ये सोचा है कि फिर दिल में समो लूँगा तुझे जज़्ब कर लूँगा निगाहों में तिरे नक़्श-ए-हसीं क्यूँकि शायद मिरी तख़्लीक़ मिरे फ़न का सुहाग तुझ से है तेरी क़सम तेरे सिवा कुछ भी नहीं