ग़म किसी कोहना-ओ-बोसीदा वरक़ पर मौजूद साल-हा-साल से मल्फ़ूज़ हिकायत की तरह वही क़िस्सा वही बात एक दरमाँदा उमीद दिल में उठती हुई धड़कन की तरह मस्लक-ए-नान-ए-जवीं रंज-ए-तनेनूर-ए-शिकम ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब में मलफ़ूफ़ रसाई का ग़ुबार या फिर इफ़्लास का इफ़रीत-ए-जुनूँ बे-पायाँ भूक और शिद्दत-ए-महरूमी-ए-देरीना से एक दिल-सोज़ तजस्सुस को लिए तीरा-नसीब एक दरमाँदा उमीद ज़िंदगी हार गई हवस-ए-दाम-ओ-दिरम ज़र-ओ-गौहर के असीर ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब समझ ही न सके एक मौहूम ख़ता सर्फ़-ए-नज़र हो न सकी मौत तक़दीर हुई ग़म सफ़र करता हुआ दर पे हुआ उफ़्तादा वही रूदाद-ए-क़दीम जहाँ क़ाबील का रंग फैल कर हैबत-ओ-बद-शक्ल-ओ-सियह कहलाया कोहना बोसीदा वर्क़ अह्द-ए-मौजूद तलक आन चला वही क़िस्सा वही बात मस्लक-ए-नान-ए-जवीं रंज-ए-तन्नूर-ए-शिकम एक दरमाँदा उमीद ज़िंदगी हार गई