उस रोज़ मौसम-ए-ख़िज़ाँ की पहली बारिश हुई जब उस ने मेरे दर से आख़िरी बार क़दम निकाला उस ने मेरी रसोई से एक निवाला न लिया मेरे कुएँ से एक घूँट न पिया और मेरे होंटों का एक बोसा न लिया बल्कि पहले लिए हुए सारे बोसे थूक दिए जब मौसम-ए-ख़िज़ाँ की दूसरी बारिश हुई तो मेरी रसोई में एक साँप निकला मेरे कुएँ में एक मेंडक पैदा हुआ और मेरे होंटों पर पहली पपड़ी जमी तब से अब तक साँप रसोई में घात लगाए है मेंडक कुएँ में दुबका है और जाने वाला रोज़ाना मेरे दर पर दस्तक देता है अपने थूके हुए बोसे चाटने के लिए