सब में शामिल है लब-ए-साहिल पे उजले संग-रेज़ो का वजूद जगमगाती सी जबीनों से ये अंदाज़ा भी कर सकते हैं वो मुतमइन से हैं मगर तिश्नगी का कर्ब होंटों से बयाँ होता नहीं आती जाती मौज-ए-दरिया ये समझती है हमेशा संग-रेज़े भी हैं उस से फ़ैज़-याब जब भी छूटी संग-रेज़ो से रिदा-ए-एहतियात उन की सफ़ पर धूप का हमला हुआ तिश्नगी का माजरा रुस्वा हुआ