तुम्हारा क्या है कि तुम हज़ारों दिलों की धड़कन तुम्हारा क्या है कि इक इशारे पे फूल कलियाँ तुम्हारे क़दमों में आ गिरे हैं न जाने कितनी ही सर-ज़मीनों के तुम फ़लक हो न जाने कितने ही तिश्ना जिस्मों का चैन हो तुम हमारा क्या है कि ना-रसाई की दास्ताँ का बने हैं उनवाँ हमारा क्या है कि उम्र सारी बिताई हम ने तो वहशतों में कि तुम से वाबस्ता हो के हम ने जो दर्द पाया वो दर्द चेहरे की मल्गजी रुत का इस्तिआ'रा बना हुआ है ये दर्द वो है जो बाक़ी-माँदा हयात का आसरा बना है ये दर्द वो है जो आने वाली किसी भी साअ'त में रौशनी का नक़ीब होगा कि हम तो वो हैं तुम्हारी यादों की शो'लगी में जला के ख़ुद को है सब्र करना अंधेर-नगरी में जब्र करना है अब भी बाक़ी