चुप चुप अपने चुप बेगाने नरसिंघे ख़ामोश अपनी रेखा लेख की हानि या करमों का दोष आशाओं की फुलवारी में फूटी कड़वी बेल पाले-पोसे बिन लहराई अल्हड़ और अनेल प्रेम लता की सुंदरता में जाग उठे अरमान अपने पराए साजन बन कर आए नज़र इंसान कड़वी बेल में बैठे फल आने की जब रुत आई बाजे-गाजे गूँज उठे और बजने लगी शहनाई माँ मौसी और संग सखियों ने शुगून शुगून मनाए डोमीनों ने रंग रचाया छेलब सोहले गाए शुभ दिन आया आज सखी री शुभ दिन आया आज चाकर बन कर आए खड़े हैं देख सखी तू राज मेरे लिए ये दिलकश सोहले बिन गए रोना राग शहनाई में डूब गया जब उस का आप त्याग जीवन पग पर पहले डग में देख के अपनी ठोड़ पल्लू थाम कर चली बावरी हाथ पराए डोर