ये हाँडी उबलने लगी ये मिट्टी की हाँडी उबलने लगी है ये मिट्टी की दीवानी हाँडी उबलने लगी है हज़ारों बरस से मिरी आत्मा ऊँघ में फँस गई थी जब इंसान दो पत्थरों को रगड़ कर कुहन-साल सूरज की सुर्ख़ आत्मा को बुलाने लगा था मगर तेज़ आँच और बहुत तेज़ बू ने झिंझोड़ा तो अब आँख फाड़े हुए दम-ब-ख़ुद है उबलने लगीं सब्ज़ियाँ फूल फल गोश्त दालें अनाज अभी शोरबे के खदकने की आवाज़ छाई हुई थी अभी साँप-छतरी लगाए हुए भाप नीले ख़लाओं की जानिब रवाँ है वो जिस की ज़ियाफ़त की तय्यारियाँ थीं कहाँ है मिरी आत्मा जाग कर चीख़ती है ये हाँडी उबलने लगी है ये मिट्टी की हाँडी उबलने लगी है ये मिट्टी की दीवानी हाँडी उबलने लगी है