शहर मशहूर-ए-ज़माना देखने आया हूँ मैं राजधानी तेरी रा'ना देखने आया हूँ मैं क्या कहूँ कैसे कहूँ क्या देखने आया हूँ मैं दीदनी हर इक नज़ारा देखने आया हूँ मैं सर-ज़मीन-ए-पदमनी गहवारा-ए-प्रतापी भीम रश्क-ए-फ़िरदौस-ए-ज़माना देखने आया हूँ मैं ख़ुशनुमा झीलों में लर्ज़ां जिन का है अक्स-ए-जमील उन हसीं महलों का नक़्शा देखने आया हूँ मैं अब भी बाक़ी जिस ज़मीं पर है गुज़िश्ता अज़्मतें वो ज़मीं बा-चश्म-ए-बीनी देखने आया हूँ मैं सरज़मीं वो जिस में थीं इस्मत से अर्ज़ां ज़िंदगी कर के पत्थर का कलेजा देखने आया हूँ मैं जिस की ख़ातिर पी गए जाम-ए-शहादत सूरमा राजपूतों का वो का'बा देखने आया हूँ मैं जिस से बाक़ी आज तक है आन राजस्थान की वो जमाल-ए-हुस्न-आरा देखने आया हूँ मैं सरज़मीं रंगी है जिन की ख़ूँ से हल्दी घाट की उन की उम्मीदों की दुनियाँ देखने आया हूँ मैं उस की मिट्टी में हवा में आब में कोहसार में शान-ए-ख़ुद्दारी का जल्वा देखने आया हूँ मैं थी फ़ज़ा मख़मूर जिन से अपने बचपन की 'हबीब' उन हसीं ख़्वाबों की दुनिया देखने आया हूँ मैं