अभी जंग जारी है जलने लगीं बस्तियाँ उठ रहा है धुआँ एक ख़ूँ-रेज़ दरिया दरख़्तों को सैराब करता है जंगल मय-ए-नाब से कितना मसरूर है जंगल जारी कहाँ है वो देखो पहाड़ों के दरों में भगदड़ मची है बिखरती हुई फ़ौज के सूरमा पीठ पर ज़ख़्म खाने के शैदा उन्हीं की है मीरास सारी उदासी जो बस्ती के खेतों में गंदुम के ख़ोशों में छुप कर शिकम में उतरती है तारीक कमरों में मुँह को छुपाती है आवाज़ दे कोई आवाज़ दे आओ बर्फ़ीली चोटी पे दौड़ें समुंदर में ग़ोते लगाएँ तआ'क़ुब करें मौत का और ऐसा भी हो ज़िंदगी तोहफ़ा-ए-जंग दौड़ाते घोड़े से बाँहों में ले कर निकल जाएँ सरपट कहीं दो-घड़ी के लिए अभी जंग जारी है जंगल को सैराब करता है ख़ूँ-रेज़ दरिया कि जंगल का क़ानून भी तो यही है