अजीब चक्कर कोई चला है जो शय जहाँ से उठाना चाही उठा न पाए जहाँ जो रक्खा वहाँ वो रक्खा नहीं रहा है जो लिखना चाहा वो लिख न पाए तमाम चक्कर उलट चला है जो ख़्वाब के दाएरे से बाहर था उस ने आँखों से बैर रक्खा दिल-ओ-नज़र में जिसे जगह दी वो ख़्वाब बन कर बिखर गया है नसीब में जो नहीं था उस की तलाश में ज़िंदगी लगा दी जो हाथ में था वो बे-ख़ुदी में दिया है जो बात कहनी थी उस की हिम्मत जुटा न पाए जो लब पे आया वो हर्फ़ ही ग़ैर हो गया है