दूर आँखों से बहुत दूर, कहीं इक तसव्वुर है, जो बे-ज़ार किए रखता है वो कोई ख़्वाब है या ख़्वाब का अंदेशा है जो मिरे सोच को मिस्मार किए रखता है दूर, क़िस्मत की लकीरों से बहुत दूर, कहीं एक चेहरा है, तिरे चेहरे से मिलता-जुलता जो मुझे नींद में बेदार किए रखता है दूर से, और बहुत दौर की आवाज़ों से एक आवाज़ बुलाती है सर-ए-शाम मुझे जानता हूँ मैं मोहब्बत की हक़ीक़त लेकिन फिर भी आग़ोश-ए-तमन्ना में, तड़प उठता हूँ चेहरे चेहरे पे बिखरती हुई, आवाज़ों में तेरी आवाज़ से आवाज़ कहाँ मिलती है एक क़िंदील ख़यालों की मगर जलती है तू मिरे पास, बहुत पास, कहीं रहती है दूर है दूर बहुत दूर, मगर फिर भी, मुझे एक उम्मीद सर-ए-शाम सजा रखती है एक उलझन मुझे रातों को जगा रखती है