बहुत पहले में अपनी माँ की बातें सुन के उन पे ख़ूब हँसती थी कि अम्मी आप सारा दिन कभी टाँगों कभी बाज़ू कभी सर या कमर के दर्द के क़िस्से सुनाती हैं एलर्जी के कई हमले दवाइयों के कई शिकवे हमेशा ही बताती हैं हमेशा शहर के सारे क्लीनिक डॉक्टर नर्सें कहाँ पे हैं या कैसे हैं सभी कुछ जानती हैं उन की बातें भी सुनाती हैं कभी तो और कोई बात भी मुझ से किया कीजे तो अम्मी हँस के कहती थीं 'समीना' उम्र के इस दौर में और कोई बात बाक़ी ही नहीं रहती और अब मैं ख़ुद पे हँसती हूँ मिरे टॉपिक बदलते जा रहे हैं मेरे अंदर उम्र की दीमक कई बरसों से मुझ को खा रही है और मैं चाहूँ भी तो कुछ कर नहीं सकती मुझे जब लोग कहते हैं 'समीना' आप तो इस उम्र में भी तो मैं अब ख़ुद पे हँसती हूँ मैं हँसती हूँ मैं हँसती हूँ