एक है ऐसी लड़की जिस से तुम ने हँस कर बात न की कभी न देखा उस की आँखों में चमके कैसे मोती कभी न सोचा तुम से ऐसी बातें वो क्यूँ कहती है कभी न समझा मिलते हो तो घबराई क्यूँ रहती है कैसे उस रुख़्सार की रंगत सरसों जैसी ज़र्द हुई जब तक मिली नहीं थी तुम से वो ऐसी तन्हा तो न थी मिल कर आँख बहाने से वो कब तक आँसू रोकेगी उस के होंटों की लर्ज़िश भी तुम ने कभी नहीं देखी क्यूँ ऐसी सुनसान सड़क पर उसे अकेला छोड़ दिया उस का दिल तो अच्छा दिल था जिस को तुम ने यूँ तोड़ दिया वो कुछ नादिम वो कुछ हैराँ रस्ता ढूँडा करती थी ढलती धूप में अपना बे कल साया देख के हँसती थी आख़िर सूरज डूब गया और राह में उस को शाम हुई