तुझ से जाने कितनी बातें करनी थीं तेरे बालों की इक लट को तेरे होंटों पर से अपने होंटों तक लाना था तेरे सिरहाने अन-देखे ख़्वाबों की क़तारें तेरी आँखों के सागर में नींदों की कश्ती मैं तेरा माँझी कितने दीपों का ये सफ़र जो नया अनोखा, अन-जाना था लेकिन सुब्ह की किरनों के तूफ़ाँ का कोई ठिकाना न था वक़्त को किस ने रोका, वक़्त को आख़िर जाना था!!