ऐ वतन ऐ राहत-ओ-आराम के दिलकश दयार तेरे शहरों पर तसद्दुक़ तेरे सहरा पर नज़ार हुस्न में तू बे-बदल है इश्क़ में तू ला-जवाब राम की तुझ में जवानी तुझ में सीता का शबाब खेत तेरे रश्क-ए-गुलशन दश्त तेरे लाला-ज़ार तुझ को बख़्शी है मशिय्यत ने बिसात-ए-ज़र-निगार तुझ में हैं आबाद दौलत-मंद भी नादार भी सीम-ओ-ज़र के गंज भी हैं रेत के अम्बार भी एक ही साअ'त में तो है शाद भी नाशाद भी तेरे चेहरे से अयाँ है दाद भी फ़रियाद भी है कहीं तू मस्कन-ए-मज़दूर वक़्त-ए-मुफ़्लिसी है कहीं सरमाया-दारों के लिए जाम-ए-ख़ुशी अज़्म-ए-रासिख़ भी है तुझ में शौकत-ए-दारा भी है लश्कर-ए-जर्रार का तू अफ़सर-ए-आ'ला भी है ऐ वतन सब कुछ है तुझ में रूह-ए-आज़ादी नहीं खा रहा है तेरे बच्चों को ग़ुलामी का यक़ीं हो रही हैं मुस्लिम-ओ-हिन्दू में ख़ाना-जंगियाँ गिर पड़ा भारत के हाथों से उख़ुव्वत का निशाँ