उस को मिरे ख़्वाबों का रस्ता जाने किस ने दिखाया है मैं जब आधी रात को थक कर अपने-आप पे गिरता हूँ वो चुपके से आ जाती है सब्ज़ सुनहरे ख़्वाब लिए नर्म गुलाबी हाथों से मिरे बालों को सुलझाती है धीमे सुरों में 'फ़ैज़' की नज़्म सुनाती है मैं उस को देखता रहता हूँ नींद में जागता रहता हूँ और वो मेरे बाज़ू पर सर रख कर सो जाती है सपनों में खो जाती है वो ख़्वाब में हँसती रहती है मैं जाग के रोता रहता हूँ