वो बात गई अब रात भरी बरसात बरसती झड़ी की टप-टप राग नहीं जो और लिपट कर सुनें मुअम्मे भेद लबों के फूल मचल के खिलें लहकती आग पे ठंडी बर्फ़ नशीले बर्फ़ पहरों कटें अब चाँद की छम-छम लहर चमकते शौक़ उमडते सैल का नशा नहीं कि जिस की खोज में सूखी रेत पे मीलों रात गए तक चलें अब ख़ौफ़ परेशाँ ज़ुल्फ़ दर-ओ-दीवार पे लर्ज़ां साए में जैसे रेंग रहा है उम्र गुज़र गई जानाँ