वो इक सितारा जो आसमाँ की बुलंदियों से उतरा ग़ुलाम हिन्दोस्ताँ की मुहीब तारीकियों में चमका जिस ने साकित फ़ज़ाओं को इर्तिआ'श बख़्शा शुऊ'र को बेदारियाँ अता कीं और ज़मीर को झिंझोड़ा बे-फ़िक्र ज़ेहनों को फ़िक्र की हरारत से जोड़ा दिलों में शम-ए-आज़ादी-ए-वतन जलाई कि जिस से दिलों के सियाह-ख़ाने मुनव्वर हुए वो जानता था कि आहन आहन को काँटता है वो अस्करी ताक़तों से जाबिर अस्कारिय्यत के इस्तिहकाम को पारा-पारा कर के वतन को आज़ाद करने का ख़्वाब बुनता रहा वो अज़्म और हौसले की क़िंदील अपनी सलीब-ए-जाँ पर जला के रौशनी और तमाज़तें बाँटता रहा वो जानता था अपने सफ़र की इब्तिदा और इंतिहा का हासिल वो ज़ेहन की वुसअ'तों में इस उम्मीद के साथ अज़ाएम के बीज बोता रहा कि आने वाली नस्ल उस फ़स्ल को कामयाबी और कामरानी से काट सके