बरबत-ए-दिल के तार टूट गए हैं ज़मीं-बोस राहतों के महल मिट गए क़िस्सा-हा-ए-फ़िक्र-ओ-अमल! बज़्म-ए-हस्ती के जाम फूट गए छिन गया कैफ़-ए-कौसर-अो-तसनीम ज़हमत-ए-गिर्या-ओ-बुका बे-सूद शिकवा-ए-बख़्त-ए-ना-रसा बे-सूद हो चुका ख़त्म रहमतों का नुज़ूल बंद है मुद्दतों से बाब-ए-क़ुबूल बे-नियाज़-ए-दुआ है रब्ब-ए-करीम बुझ गई शम्-ए-आरज़ू-ए-जमील याद बाक़ी है बे-कसी की दलील इन्तिज़ार-ए-फ़ुज़ूल रहने दे राज़-ए-उल्फ़त निबाहने वाले बार-ए-ग़म से कराहने वाले काविश-ए-बे-हुसूल रहने दे